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Showing posts from July, 2015

अन्दर कोई हैं

गाड़ियों में जाने-अनजाने आदमी भागते जा रहे हैं.... मैं भी भाग रहा हूँ, तेज बहुत तेज... अन्दर कोई हैं जो कह रहा हैं- भाग ले कितना भी तेज मंजिल नहीं मिलेगी... दोस्तों के घर सजे हैं सुन्दर नियाब चीजों से... मैं भी सजा रहा हूँ घर, चीजे ढूंढ ढूंढ... पर कोई हैं जो हँस रहा हैं- घर सुन्दर सजाने से तू तो सुन्दर नहीं होगा... मेरे साथी सम्बन्धी भर रहे हैं तिजोरियां... मैं भी जुटा हूँ पैसे कमाने में... पर पा रहा हूँ अन्दर अब भी खाली हूँ... Originally posted:

प्रभु तुम बरस रहे हो...

प्रभु तुम बरस रहे हो... हर पल हर क्षण... पर जाने क्यों मेरा ह्रदय आँगन सुखा ही रह जाता हैं..,   आस-पास जहाँ भी ह्रदय से देखता हूँ... प्रभु तुम ही नज़र आते हो... पर जाने क्यों इन आँखों में तुन्हारी छवि धूमिल होती जाती हैं... जब भी तुम्हारे प्रेम के लिए हाथ फहलाता हूँ... मेरी साँसे तुम से महक पड़ती हैं... पर हथेली से रेत की तरह तुम छुटते जाते हो.... प्रभु जानता हूँ, मुझमे ही कमी हैं... पर जाने क्यों प्र्यतन कर के भी सुधार नहीं पाता...

प्रेम का दीप

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अँधेरे को जो चीर रहा हैं.....        प्रिय ये तुम्हारे प्रेम का ही दीप हैं..... उस पल जब डर से घिर, मेरा ह्रदय कपने लगता हैं....          साँसे भी डर के, मुझे छोड़ भाग जाना चाहती हैं...                  तब इसकी न भुजने वाली लो कहती हैं...                           हिम्मत मत हरो.... मैं साथ हूँ.... और कभी जब मैं उलझ जाती हूँ संसार की बातों में....          भटक जाती हूँ अपनी राह,                   तब इसकी रोशनी मुझे मार्ग देती हैं...                           प्रभु वापस तुम तक आने का.... अँधेरे को जो चीर रहा हैं.....        प्रिय ये तुम्हारे प्रेम का ही दीप हैं..... "अँधेरे पर प्रकाश की विजय मुबारक हो"