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प्रभु तुम बरस रहे हो...

प्रभु तुम बरस रहे हो... हर पल हर क्षण... पर जाने क्यों मेरा ह्रदय आँगन सुखा ही रह जाता हैं..,   आस-पास जहाँ भी ह्रदय से देखता हूँ... प्रभु तुम ही नज़र आते हो... पर जाने क्यों इन आँखों में तुन्हारी छवि धूमिल होती जाती हैं... जब भी तुम्हारे प्रेम के लिए हाथ फहलाता हूँ... मेरी साँसे तुम से महक पड़ती हैं... पर हथेली से रेत की तरह तुम छुटते जाते हो.... प्रभु जानता हूँ, मुझमे ही कमी हैं... पर जाने क्यों प्र्यतन कर के भी सुधार नहीं पाता...

प्रेम का दीप

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अँधेरे को जो चीर रहा हैं.....        प्रिय ये तुम्हारे प्रेम का ही दीप हैं..... उस पल जब डर से घिर, मेरा ह्रदय कपने लगता हैं....          साँसे भी डर के, मुझे छोड़ भाग जाना चाहती हैं...                  तब इसकी न भुजने वाली लो कहती हैं...                           हिम्मत मत हरो.... मैं साथ हूँ.... और कभी जब मैं उलझ जाती हूँ संसार की बातों में....          भटक जाती हूँ अपनी राह,                   तब इसकी रोशनी मुझे मार्ग देती हैं...                           प्रभु वापस तुम तक आने का.... अँधेरे को जो चीर रहा हैं.....        प्रिय ये तुम्हारे प्रेम का ही दीप हैं..... "अँधेरे पर प्रकाश की विजय मुबारक हो"                 

व्यापार

हर रोज सुबह उठ कर मैं ठेली लगाता हूँ.... व्यापार करता हूं सपनों में जीने वालो को जगाता हूँ ॥ झकझोडता हूँ !! जमीन में गहरी जडों को खोदता हूँ ।। तुम्हे यथार्थ दिखाना चाहता हूं .... !! सच बोलता हूँ अौर सच बोलने का अपराध सिखाता हूं हर किसी को अपना सच का दर्पन बेचना चाहता हूं ....!! झुठ के तुम्हारे सुन्दर कपडो को जला कर तुम्हे अपनी तरह नग्न खडा कर देना  चाहता हूं .... !! हां जानता हूं मुझे तुम फिर सूली दोगे फिर भेजोगे विष का प्याला यही मूल्य तुम दे सकोगे ....!! और इसी को पाकर मैं खुश हूं ....!! हाँ मैं व्यापार करता हूं और तुम्हें अपना ग्राहक बनाना चाहता हूं प्रेम _/\_