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प्रेम का दीप

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अँधेरे को जो चीर रहा हैं.....        प्रिय ये तुम्हारे प्रेम का ही दीप हैं..... उस पल जब डर से घिर, मेरा ह्रदय कपने लगता हैं....          साँसे भी डर के, मुझे छोड़ भाग जाना चाहती हैं...                  तब इसकी न भुजने वाली लो कहती हैं...                           हिम्मत मत हरो.... मैं साथ हूँ.... और कभी जब मैं उलझ जाती हूँ संसार की बातों में....          भटक जाती हूँ अपनी राह,                   तब इसकी रोशनी मुझे मार्ग देती हैं...                           प्रभु वापस तुम तक आने का.... अँधेरे को जो चीर रहा हैं.....        प्रिय ये तुम्हारे प्रेम का ही दीप हैं..... "अँधेरे पर प्रकाश की विजय मुबारक हो"