व्यापार
हर रोज सुबह उठ कर मैं ठेली लगाता हूँ.... व्यापार करता हूं सपनों में जीने वालो को जगाता हूँ ॥ झकझोडता हूँ !! जमीन में गहरी जडों को खोदता हूँ ।। तुम्हे यथार्थ दिखाना चाहता हूं .... !! सच बोलता हूँ अौर सच बोलने का अपराध सिखाता हूं हर किसी को अपना सच का दर्पन बेचना चाहता हूं ....!! झुठ के तुम्हारे सुन्दर कपडो को जला कर तुम्हे अपनी तरह नग्न खडा कर देना चाहता हूं .... !! हां जानता हूं मुझे तुम फिर सूली दोगे फिर भेजोगे विष का प्याला यही मूल्य तुम दे सकोगे ....!! और इसी को पाकर मैं खुश हूं ....!! हाँ मैं व्यापार करता हूं और तुम्हें अपना ग्राहक बनाना चाहता हूं प्रेम _/\_